ड्यूटी के वक़्त मलयालम ना बोलने का आदेश मिलते ही नर्सों ने किया विरोध

दरअसल, मामला दिल्ली के जीबी पंत अस्पताल का है। जहाँ बीते शनिवार को ड्यूटी के दौरान नर्सिंग स्टाफ को मलयालम ना बोलने का आदेश देते हुए एक परिपत्र जारी किया है। जिसके पीछे की वजह यह बताई गई, ‘अधिकतर मरीज और सहकर्मी इस भाषा को नहीं जानते हैं’ जिसके कारण बहुत असुविधा होती है। हालांकि हड़कंप मचने के बाद इस आदेश को वापस ले लिया गया है।
अस्पताल के चिकित्सा निदेशक ने रविवार को बोला कि अस्पताल ने एक दिन पहले जारी अपने उस विवादास्पद आदेश को वापस ले लिया है, जिसमें उसके नर्सिंग कर्मचारियों से मलयालम भाषा में बात नहीं करने को कहा गया था।
चिकित्सा निदेशक डॉ. अनिल अग्रवाल ने बताया, ‘इस परिपत्र को वापस लेने का औपचारिक आदेश जल्द जारी किया जाएगा। मामले की जांच की जा रही है और इसके बाद कार्रवाई की जाएगी।’
जीबी पंत नर्सेज एसोसिएशन के अध्यक्ष लीलाधर रामचंदानी ने दावा किया था कि यह एक मरीज द्वारा स्वास्थ्य विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी को अस्पताल में मलयालम भाषा के इस्तेमाल के संबंध में भेजी गई शिकायत के अनुसार में जारी किया गया है। उन्होंने हालांकि बताया था कि एसोसिएशन परिपत्र में इस्तेमाल किए गए शब्दों से असहमत है। अस्पताल में एक मलयाली नर्स ने बताया कि पहले इस तरह की आपत्तिजनक कभी नहीं उठाई गई।
उन्होंने बोला, ‘हमें बताया गया कि एक मरीज ने यह आपत्ति जताई और यह आदेश सचिवालय से आया है। यह बहुत ही गलत है। यहां लगभग 60 प्रतिशत नर्सिंग स्टाफ केरल से है और ऐसा नहीं है कि हम सभी नर्सें मलयालम में मरीजों से बात करती हैं। यहां कई मणिपुरी और पंजाबी नर्सें भी हैं, जब भी वे आपस में मिलती हैं तो अपनी भाषा में बात करती हैं. यह कभी किसी प्रकार का मुद्दा नहीं रहा है।’
एम्स, एलएनजेपी और जीटीबी अस्पतालों समेत दिल्ली के कई विभिन्न अस्पतालों के मलयाली नर्सिंग अधिकारी प्रतिनिधियों ने शनिवार रात को एक एक्शन समिति का गठन किया था, जिसने इस आदेश की निंदा की और इसके खिलाफ सोशल मीडिया अभियान शुरू करने का फैसला किया था।
इस आदेशी मामले पर कांग्रेस के सांसद केसी वेणुगोपाल ने भी केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्द्धन से आग्रह किया था कि वह जीआईपीएमईआर की ओर से जारी किए गए इस असंवैधानिक सर्कुलर को तत्काल वापस लेने का आदेश दें।
I urge to Hon'ble health Minister @drharshvardhan to order an immediate withdrawal of the bizarre & unconstitutional circular issued by the authorities of GIPMER. pic.twitter.com/RrNLSCObY8
— K C Venugopal (@kcvenugopalmp) June 5, 2021
इस मामले पर गंभीरता जताते हुए तिरुवनंतपुरम से कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने भी ट्वीट कर इस फैसले की निंदा करते हुए कहा था, ‘यह दिमाग को चकरा देता है कि लोकतांत्रिक भारत में एक सरकारी संस्थान अपनी नर्सों को उनकी मातृभाषा में बात नहीं करने को कह रहा है। यह अस्वीकार्य, असभ्य, आपत्तिनजक और भारतीय नागरिकों के बुनियादी मानवाधिकारों का उल्लंघन है।’
It boggles the mind that in democratic India a government institution can tell its nurses not to speak in their mother tongue to others who understand them. This is unacceptable, crude,offensive and a violation of the basic human rights of Indian citizens. A reprimand is overdue! pic.twitter.com/za7Y4yYzzX
— Shashi Tharoor (@ShashiTharoor) June 5, 2021