भाजपा का इकलौता दुर्ग नेमम सीट का चुनाव अब बन चुका है महामुकाबला, कांग्रेस ने भाजपा को पराजित करने के लिए झोंकी ताकत

केरल में होने वाले मौजूदा विधानसभा चुनाव में भाजपा के इकलौते गढ़ नेमम का चुनावी मुकाबला सूबे के सबसे दिलचस्प मुकाबलों में से एक बन गया है। कांग्रेस ने केरल में भाजपा के बढ़ते राजनीतिक आधार को उसके गढ़ में ही थामने की रणनीति के तहत सूबे के अपने एक दिग्गज नेता के. मुरलीधरन को अखाड़े में उतार यहां के चुनाव को हाईप्रोफाइल बना दिया है। भाजपा ने भी मिजोरम के राज्यपाल रहे सूबे के अपने वरिष्ठ नेता कुम्मनम राजशेखरन की उम्मीदवारी पर दांव लगा अपने इस मजबूत दुर्ग को बचाने के लिए जोर लगा दिया है। भाजपा और कांग्रेस के बीच प्रतिष्ठा की जंग में सत्ताधारी वामपंथी गठबंधन एलडीएफ चुनाव को त्रिकोणीय बनाते हुए इसका फायदा उठाने का पूरा प्रयास कर रहा है।
सूबे की राजधानी तिरुअनंतपुरम से सटा हुआ गढ़ नेमम को प्रदेश की भाजपा केरल का गुजरात मानती है। इसीलिए मौजूदा चुनाव को सूबे में पार्टी के विस्तार के लिए भाजपा बेहद अहम मान रही है। वैसे तिरुअनंतपुरम के शहरी इलाकों में भाजपा का राजनीतिक संगठन और आधार है, मगर नेमम वह सीट है जहां पिछले चुनाव में भाजपा ने पहली जीत दर्ज कर केरल विधानसभा में अपना खाता खोला था। पार्टी के वरिष्ठ नेता ओ. राजगोपाल यहां से चुनाव जीतकर केरल में भाजपा के पहले विधायक बने थे। इस बार भाजपा ने साफ सुथरी छवि वाले राजशेखरन को मैदान में उतारा है और पार्टी के अलावा आरएसएस का कैडर इस सीट को अपनी झोली में फिर से डालने के लिए पूरा जोर लगा रहा है।
अब कांग्रेस के उम्मीदवार के. मुरलीधरन के आ जाने से राजशेखरन की चुनौती और भी ज़्यादा बढ़ गई है। केरल में भाजपा के राजनीतिक आधार में इजाफे को भविष्य में अपने लिए बड़ा खतरा मान रही कांग्रेस ने इस चुनाव को दोहरी लड़ाई के रूप में लिया है। एक तरफ एलडीएफ को घोटालों की सरकार के तौर पर पेशकर यूडीएफ की सत्ता में वापसी के लिए पार्टी मशक्कत कर रही है तो दूसरी ओर भाजपा को थामना भी उसके लिए अहम बन गया है। इसी रणनीति के तहत कांग्रेस अपने पुराने दिग्गज के. करुणाकरन के बेटे लोकसभा सांसद के. मुरलीधरन को नेमम से चुनाव लड़ा रही है। कांग्रेस को आशंका थी कि किसी सामान्य उम्मीदवार को लाकर इस सीट पर भाजपा के उम्मीदवार की जीत को रोकना कठिन होगा। इसीलिए के. मुरलीधरन को लाया गया जो सूबे में कांग्रेस के अगली पीढ़ी के मुख्यमंत्री के दावेदारों में भी गिने जाते हैं।
नेमम की जमीनी राजनीतिक और सामाजिक स्थिति भी काफी हद तक कांग्रेस की आशंकाओं को निराधार नहीं ठहराती। करीब दो लाख मतदाताओं में व्यापक बहुमत यहां की उंची नायर जाति का है और इनमें भाजपा की काफी मजबूत पैठ है। स्थानीय निकाय चुनाव में नेमम के 21 में से 14 वार्ड में भाजपा के काउंसलर हैं जबकि सात वामदलों के हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में तिरुअनंतपुरम सीट जीतने वाले शशि थरूर भी नेमम सीट पर भाजपा से 12 हजार मतों से पीछे रह गए थे। कांग्रेस स्वाभाविक रूप से भाजपा को उसके इस मजबूत गढ़ में शिकस्त देकर केरल की राजनीति में उसके आगे बढ़ते कदमों को यहीं पर थाम लेने की रणनीति पर काम कर रही है।
कांग्रेस और भाजपा के बीच की इस लड़ाई को माकपा नेमम में अपने लिए भी मौका तलाश रही है और उसने अपने पुराने नेता पूर्व विधायक शिवेन कुटटी को मैदान में उतारा है। कुटटी जहां मुरलीधरन को बाहरी उम्मीदवार बता रहे वहीं राजशेखरन को सांप्रदायिक बताते हुए बातचीत में कहते हैं कि केरल के लोग ऐसी राजनीति को स्वीकार नहीं करेंगे। राजशेखरन के चुनावी प्रबंधन टीम के पदाधिकारी राजेश इसे खारिज करते हुए कहते हैं कि कुटटी का घमंडी स्वभाव उनकी नैया डूबोएगा, जबकि केवल अच्छी छवि से ही मुरलीधरन भाजपा-आरएसएस के ढांचे को तोड़ नहीं पाएंगे। कांग्रेस के एक स्थानीय पदाधिकारी निशीथ के अनुसार चूंकि तीनों प्रमुख दलों के उम्मीदवार नायर समुदाय के हैं इसलिए उनका वोट बंटेगा। जबकि मुस्लिम वर्ग का वोट मुरलीधरन को मिलेगा जो हार-जीत में निर्णायक होगा।